किसान आंदोलन या मीडिया आंदोलन
1 जून से प्रदेश में होने वाला तथाकथित किसान आंदोलन कौन कर रहा है, कौन सा संगठन है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन पूरे प्रदेश की शासकीय मशीनरी किसान आंदोलन की खबर से अलर्ट मोड पर है. टीवी चैनलों पर किसान आंदोलन को लेकर डिबेट हो रही है.
भाजपा किसानों की हितैशी बन रही है, तो कांग्रेस भाजपा को किसान विरोधी बता रही है. मीडिया में डिबेट इस तरह चल रही है, जैसे तृतीय विश्वयुद्ध की तैयारी हो रही हो. हाल ही में सोशल मीडिया की देन से ही 10 अपै्रल को भारत बंद की अफवाह चली थी और इस अफवाह में ही चार लोगों की जान चली गई थी.
या यूं कहें कि 10 अप्रैल का भारत बंद सोशल मीडिया ने ही करा दिया. इस बार भी कहीं ये किसान आंदोलन मीडिया की देन तो नहीं है. क्योंकि ना तो कोई संगठन किसान आंदोलन की जिम्मेदारी ले रहा है और ना ही वर्तमान में ऐसे कोई हालात हैं.
15 दिन से किसान आंदोलन के नाम पर सरकार ने सब कामकाज छोड़कर आंदोलन को रोकने के लिए संसाधन लगा दिए हैं. क्या कभी आंदोलन घोषित होकर तारीख तय होती है, लेकिन इस किसान आंदोलन की बकायदा तारीख तय की गई और आंदोलन की कोई समय सीमा नहीं होती, लेकिन इस आंदोलन की समयसीमा भी तय है, याने 1 से 10 जून तक.
पिछले किसान आंदोलन की आग में कई किसान सुलगे हैं जिनके जख्म अभी भी ताजे हैं, लेकिन इस किसान आंदोलन की खासियत यह है कि जो खेत-खलिहान में काम करता है, वह आंदोलन से दूर है और जो नेता रूपी किसान एसी चैम्बरों में बैठकर किसानों की चिंता में दुबले हो रहे हैं, वे आंदोलन पर ज्यादा बहस कर रहे हैं.
वास्तविक किसान अभी भी 46 डिग्री तापमान में खेतों में काम कर रहा है और नकली व एसी वाले बैठकर राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए किसान आंदोलन की शक्ल दे रहे हैं. ये वीआईपी किसान मीडिया की बैसाखियों पर प्रदेश में किसान आंदोलन की ऐसी हवा बना रहे हैं, जैसे प्रदेश में किसानों की स्थिति बद से बदतर है. इसलिए कह सकते हैं कि ये किसान आंदोलन नहीं, वीआईपी किसानों का मीडिया की बैसाखियों पर चलकर मीडिया आंदोलन है.